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Monday, March 27, 2017

पुष्प की अभिलाषा

आज सुबह की बात है। घर से निकले ऑफिस की तरफ। और जैसा की अक्सर होता है हमारी महानगरी मुम्बई में , आधे रास्ते में फँस गए ट्रैफिक में। वैसे तो यहां की बड़ी और  चौड़ी सडकों को एक्सप्रेस-वे और फ्री-वे बोला जाता है, पर ऑफिस के समय ज्यादातर गाड़ियां रेंगती हुयी ही नज़र आती हैं।  गाड़ी से बाहर झाँका तो नज़र पड़ी डिवाइडर पर। छोटे-छोटे पौधे लगे हुए थे। और फिर ध्यान गया उन पर खिले हुए फूलों पर। बस फिर कहीं दिमाग के कोने से निकल आयी वो कविता जो बचपन में पढ़ी थी - श्री माखनलाल चतुर्वेदी की रचना "पुष्प की अभिलाषा"

चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गुंथा जाऊं,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ।
चाह नहीं सम्राटों के शव पर, हे हरी ,डाला जाऊं,
चाह नहीं देवों  के शीष चढूं, भाग्य पर इठलाऊँ। 
मुझे तोड़ लेना वनमाली , उस पथ  पर देना तुम फ़ेंक,
मातृभूमि पर शीष चढ़ाने, जिस पथ जाएँ वीर अनेक। 

कई साल हो गए, इस कविता को पढ़े हुए। स्कूल के पाठ्यक्रम का हिस्सा था। मुझे याद है टीवी पर भी अक्सर आया करता था। और शायद इसी कारण दिमाग में अच्छे से बस गयी थी ये कविता।  और आज सुबह जैसे ही सड़क के डिवाइडर पर खिले हुए फूलों पर नज़र गयी, सारे शब्द खुद-ब-खुद याद आ गए। 

मनुष्य का जटिल दिमाग - कभी तो अभी पढ़ी हुयी चीज़ याद नहीं आती और कभी अकस्मात् सालों पुरानी भूली हुयी यादें प्रकट हो जाती हैं। 

Wednesday, September 14, 2016

Hindi Diwas

१४ सितंबर - हर साल हम इस दिन को हिंदी दिवस  के रूप में मनाते  हैं. और आज हिंदी दिवस के अवसर पर मन में आया की क्यों न हिंदी में एक ब्लॉग लिखा जाए?

हिंदी दिवस का इतिहास  -  १४ सितंबर, १९४९ को भारत के संविधान सभा में ये निर्णय लिया गया था की हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी.  और राजकीय कार्यों  के लिए हिंदी का प्रयोग देवनागरी लिपि में होगा और सारे अंक अरबि लिपि के होंगे.  १९५३ में राष्ट्र भाषा प्रचार समिति ने ये तय किया की पुरे देश में १४ सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाएगा.  

वैसे हिंदी तो मेरी मातृभाषा है, परंतु हिंदी का प्रयोग अब धीरे धीरे कम होता जा रहा है. कंप्यूटर के आने के कारण हिंदी में लिखना तो बिलकुल ही नाम मात्र का रह गया है. शायद आखिरी बार दसवीं की परीक्षा थी तभी लिखा था. उसके बाद से तो देवनागरी लिपि में लिखना लगभग छूट सा ही गया है. शायद कुछ फॉर्म में बस हस्ताक्षर करने के लिए देवनागरी लिपि का प्रयोग किया हो. पर transliteration सॉफ्टवेयर्स आ जाने से काफी मदद मिली है. इस कारण कभी-कभार देवनागरी में एक-आध सन्देश डाल देता हूँ. 

हालांकि बोल-चाल के लिए अभी भी हिंदी का ही प्रयोग काफी करता हूँ, पर उसमे भी अंग्रेजी के शब्द बढ़ते ही जा रहे हैं. सिनेमा और टीवी धारावाहिक अब ज्यादातर अंग्रेजी वाले ही देखे जाते हैं. हिंदी का उपयोग कम ही होता जा रहा है. 

वैसे हिंदी भाषा में पिछले कई वर्षों से कोई  नया लोकप्रिय लेखक भी नहीं आया है. आज भी जो हिंदी साहित्य हम पढ़ते हैं, ज्यादातर पुराने हो चले है. प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, देवकीनंदन खत्री, महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी चौहान, रामधारी सिंह दिनकर जैसे लेखकों को आज भी पढ़ा जाता है. पर नए युग के लेखक नहीं मिलते. हिंदी साहित्य में को चेतन भगत या अमिश जैसी लोकप्रियता वाला कोई नया लेखक भी नहीं है. ज्यादातर युवा लेखक अंग्रेजी में ही लिखते है. हालांकि उनकी रचनाओं पे आधारित फ़िल्में हिंदी में ही बनती है और उनके हिंदी अनुवाद काफी बिकते है. तो हिंदी के उपभोक्ताओं की कमी तो है नहीं पर उसके मूल रचियेताओं की कमी तो ज़रूर है.

हिंदी सिनेमा में पहले सारे कलाकारों के नाम तीन भाषाओँ  में आते थे - हिंदी, उर्दू एवं अंग्रेजी, अब सिर्फ रोमन लिपि वाली अंग्रेजी का ही प्रयोग होता है. 

पता नहीं हिन्दी भाषा और देवनागरी लिपि के लिए ये उदासीनता क्यों बढ़ती जा रही है? शायद हमारे पाठ्यक्रम में  दोष रहा है. हिंदी जो हमारी बोलचाल की भाषा है उसे तो हम ठीक से बढ़ावा नहीं दे पा रहे हैं. और हम संस्कृत जो की लगभग लुप्त सी हो गयी है, उसे प्रचलित करने की बात करते हैं. 

एक सुझाव है. जिस तरह ज्यादातर अंग्रेजी साहित्य अब kindle और google play  पर निशुल्क उपलब्ध है, वैसे ही क्यों न हिंदी के भी लोकप्रिय साहित्य (जिनके कॉपीराइट समाप्त हो गए हो) को भी निशुल्क उपलभ्द करा दिए जाए. 

बस आज हिंदी दिवस के अवसर ऐसे ही मन में विचार आया तो बस लिख डाला. सोचता हूँ बीच-बीच में हिंदी में कुछ लिखता रहूँ. 

सारे पाठकों को हिंदी दिवस की ढेरों सुभकामनायें. 

P.S. Transliteration Software की जय. आखिर पूरा ब्लॉग रोमन लिपि वाले keyboard से जो लिखा है.